Sunday, 5 January 2020

08 विनय प्रश्रय

                                                विनय-प्रश्रय


साधनमार्ग की क्लान्त एवं शिथिल मनःस्थिति में विनय-प्रश्रय, घनी शीतल छाया बन कर मेरा प्रिय आश्रय रहा जिससे स्फूर्ति एवं उत्साह बना रहा है तथा आगे बढ़ने की शक्ति- सामर्थ्य संभव हो सकी है । समय-समय पर जो स्तुतियाँ मेरा अवलम्ब एवं सम्बल बनी है उन्हीं मेरी प्रिय स्तुतियों का यह संकलन यहाँ प्रतुत है। पातञ्जलि योग-शास्त्र में समाधिपाद सूत्र 23 के अंतर्गत "ईश्वर प्रणिधानाद्वा" कह कर विनय-प्रश्रय को समाधि-लाभ तथा ब्रह्मप्राप्ति का साधन बताया है। वस्तुतः पारब्रह्म परमात्मा को जानने और प्राप्त करने का सबसे उत्तम और  सरल साधन 'प्रार्थना' ही है।

"सर्वे वेदा यत पदमामनन्ति
तपाँसि सर्वाणि च यद् वदन्ति।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति।
तत ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत
- ॐ इति एतत [कठ0 - 01, 02, 15]

समस्त वेद नानाप्रकार और नाना छंदों से [आयनन्ति] जिसका प्रतिपादन करते हैं, सम्पूर्ण तप आदि साधनों का जो एकमात्र परम एवं चरम लक्ष्य है तथा जिसको प्राप्त करने की इच्छा से साधक निष्ठापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उस पुरुषत्तम भगवान् का परमतत्व मैं तुम्हें संक्षेप में बतलाता हूँ।

वह है एक अक्षर ॐ  

- गुरुवंदना

गुर्रुब्रह्मा गुर्रुविष्णु गुर्रुदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महादेव है, गुरु साक्षात् परमब्रह्म है, उन श्री गुरुदेव को हम प्रणाम करते हैं, नमस्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं।

ॐ भूर्भुवः स्वः। तत सवितुर्ववरेण्यम भर्गो
देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात।।
[यजु 0 - 36/30]  


 [भूर्भुवः स्वः] तीन महा व्याहृति या महावाक्य।
[ॐ] परमेश्वर [भू] सर्वाधार [भुवः] सर्वव्यापक और [स्वः] सुखस्वरूप है। [देवस्य] उस प्रकाशमय [सवितुः] सबको चलाने वाले जगदीश्वर की [तत] उस प्रसिद्ध [वरेण्यम] अति उत्तम [भर्गो] ज्योति को [धीमहि] धारण करें [यः] जो परमेश्वर [नः] हमारी [धियः] बुद्धियों एवं कर्मों को [प्रचोदयात] प्रेरित करें।

सबकी रक्षा करने वाले परमेश्वर, जो प्राणो के भी प्राण हैं, सब दुःखों से मुक्ति दिलाने वाले, स्वयं सुख स्वरुप और सबको सुख देने वाले हैं, उन सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति करने वाले कामना करने योग्य परमात्मा को जो अति श्रेष्ठ हैं, ग्रहण करने योग्य है, क्लेश-नाशक एवं पवित्र शुद्ध स्वरुप हैं ; हम लोग धारण करें ; उनका ध्यान करें जिससे वह परमात्मा हमारी बुद्धियों को उत्तम गुण कर्म स्वभावों के प्रति प्रेरित करें। 
- मंगलभावना

ॐ विश्वानिदेव  सवितर्दुरितानि परासुव।
यद् भद्रं तन्न s आसुव।।

[यजु 0 30/03]

[देव] हे प्रकाशमय [सवितुः] सर्वनियन्ता परमेश्वर ! [विश्वानि] हमारे सम्पूर्ण [दुरतानि] संकटों को [परा-सुव] दूर करें और [यत] जो [भद्रं] मंगल हो [तत] वह [नः] हमारे लिए [आसुव] सुलभ करावें।

हे परमेश्वर ! आप शुद्ध स्वरुप हैं। आप ही सब सुखों के दाता हैं। हे नाथ ! आप सकल जगत के उत्पत्ति-कर्ता हैं और विश्व का समस्त ऐश्वर्य भी आप ही हैं।

हे प्रभो ! हमारे सारे दुर्गुणों, दुर्व्यसनोँ और दुःखों को दूर करें तथा जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव और पदार्थ हैं, वे सब हमको प्राप्त हों, यही आपसे हमारी विनम्र प्रार्थना है।

भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजात्रः।
 स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर  व्यशेमहि देवहितं यदायुः।।
[यजु0 25/21 ऋ. 01/81/08]

[भद्रं] भद्र भावनाओं को, [कर्णेभिः श्रृणुयाम] कानों से सुनें, [देवा] हे विद्वान पुरुषों ! [भद्र अक्षमिः पश्येम] उत्तम दृश्यों को हम आँखों से देखें [यजत्राः] हे कर्मठ पुरुषों ! [स्थिरै] स्वस्थ और सबल [अङ्ै तुष्टवाँसः] अंगों से स्तुति करते हुए [तनुभिः] शरीरों से [देव हितं] भगवान की उपासना करने के योग्य [यत] जो [आयुः] जीवन को [वि-अशेमहि] विशेष रूप से, व्यापक रूप में प्राप्त करें।

हे  कर्मठ विद्वान पुरुषों ! अपने श्रवणो से हम मंगलवाणी का श्रवण करें, अमंगल एवं अभद्र का नहीं। अपनी आँखों से हम भद्र दृश्य देखें, अभद्र नहीं। स्वस्थ, सम्बल अंगों तथा शरीरों से युक्त हो कर, भगवान् की स्तुति प्रार्थना करते हुए हम लोग उच्चकोटि के जीवन को, दीर्घायु को प्राप्त करें,

यही प्रभु से प्रार्थना है।


शिव संकल्प

यज्ज्याग्रतो दूरमुदैति दैवं सुप्तस्य तथैवैति।
दुरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु।।
[यजु0 : 34/01]   

[यत] जो मन [जाग्रतः] जागते हुए का [दूरं] दूर-दूर तक [उदयति] उड़ता है, जाता है [दैवं] दिव्य-शक्तिओं से परिपूर्ण [तत + उ] वही [सुप्तस्य] सोये हुए का [तथा + एव] उसी प्रकार से [एति] जाता-आता है [दूरं गमं] दूरगामी [ज्योतिषां] आँख आदि इन्द्रियों को [ज्योतिः] प्रकाश देने वाला है [एकं] अकेला, केवल वही [तत] वह [मे मनः] मेरा मन [शिव संकल्पं अस्तु] कल्याणकारी शान्त  संकल्प वाला हो।

यह अति चंचल मन जागते हुए मनुष्य का तो दूर-दूर तक जाता ही है, सोते मनुष्य का भी उसी प्रकार से दौड़ता रहता है। आत्मा का ज्ञान एकमात्र उसी के आधीन है उसके बिना सम्भव ही नहीं है। वह आँख आदि इन्द्रियों को शक्ति देने वाला है, उसके बिना इन्द्रियां कुछ नहीं कर सकतीं। वह संकल्प विकल्प-विकल्प दोनों करता है। है प्रभो ! वह हमारा मन शांत एवं कल्याणकारी संकल्प वाला हो, यही हमारी विनम्र प्रार्थना है।

अभयं

अभयं मित्रादभयममित्राद अभय ज्ञातादभयं परोक्षात।
अभयं नक्तमभयं दिवा नः सर्वा आशा ममं मित्रं भवन्तु।।
[अथर्व0 19/15/06]

[अभयं] निर्भय हो [मित्रात] मित्र से [अभित्रात] शत्रु से [ज्ञातात] ज्ञात जनों से [परोक्षात] अज्ञात जनों से [नक्तं] रात्रि में [दिवा] दिन में [नः] हमारे लिये [सर्वा] सम्पूर्ण [आशा] दिशाएँ [मम मित्रं भवन्तु] मेरी मित्र हो।

[हे परमपिता परमात्मा ! मित्र से, शत्रु से, ज्ञातजनों से, अज्ञातजनों से, सबसे हम निर्भय हों। दिन और रात्रि में और सम्पूर्ण दिशाओं में हम निर्भय हो कर विचरण करें, यही आपसे हमारी विनम्र प्रार्थना है।]

शरणम [क़ुरान शरीफ़ से - सूरे फ़ातहा ]

अऊजु बिल्लाहि मिनश शैत्वानिर रजीम।।
बिस्मिल्लाहिर ऱह मानिरऱहीम।
अल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन।
अऱ रह मॉनिर् रहीम, मालिकि यौमिद्दीन।
ईयाक न अबुदु व ईयाक नस्तईन।
इह् दिनस सिशतल मुस्तक़ीम।
सिरातल लज़ीन अन अम्त अलैहिम ;
ग़ैरिल मग़ज़ूबे अलैहिम व लज्जु आल्लीन।।
आमीन।।

[पापात्मा शैतान से बचने के लिए मैं परमात्मा की शरण लेता हूँ। प्रथम स्मरण करता हूँ अल्लाह का जो अत्यंत कृपालु व दयालु है। हर प्रकार की स्तुति भगवान के ही योग्य है।

वह परमपिता परमात्मा सम्पूर्ण विश्व का पालन-पोषण करने वाला, उद्धारक, परमकृपालु एवं परम दयालु है। न्याय के दिन का वही मालिक है।
प्रभो ! हम आपकी ही आराधना करते हैं और आपकी ही शरण एवं सहायता के प्रार्थी हैं।

हे दयानिधे ! हमें उस प्रशस्त मार्ग पर ले चलिए जिस पर चल कर साधक आपकी कृपा, दया व प्रसन्नता के अधिकारी बने हैं, उस मार्ग पर नहीं जिस मार्ग पर चल कर मनुष्य आपकी अप्रसन्नता और आपके दंड के भागी बने है अथवा जो भूले, भटके हुए हैं। ऐसा ही हो !!!]


- याचना [दरूद शरीफ़] 

अल्ला हुम्मा सल्ले अला सैय्यदना मोहम्मदिन।
मादनिल जूदे वलकरम व अलेहि व सल्लम। 

[हे परमपिता परमात्मा ! हमारे आश्रय हज़रत मोहम्मद पर जो बड़े कृपालु, दयालु व बड़े दाता हैं, अपनी कृपा-वृष्टि कर और उनकी संतान पर भी अपनी दया व कृपा-वृष्टि कर और उन्हें दीर्घायु प्रदान कर, सदा प्रसन्न रक्खें।]     

दिव्य प्रसाद

बिस्मिल्लाहिऱ रहमानिर् रहीम।
कुल हु वल्ला हु अहद। अल्ला हुस्समद
लम यालिद, वलम यूलद ;
व लम यक़ुल्लहू कुफ़वन अहद। 

[ऐ पैग़म्बर ! लोग तुम्हें खुदा का बेटा बतावें और तुमसे खुदा का हाल पूँछें तो तुम उनसे कहना - " वह अल्लाह एक है।  वह स्वतंत्र (बेनियाज़) है, उसको किसी आश्रय की आवश्यकता नहीं है। न उससे कोई पैदा हुआ है, न वह किसी से पैदा हुआ है और उसकी समता का कोई दूसरा है।”]

- Blessings :

[03] "Blessed are the poor in sprit ; for theirs is the kingdom of heaven."

[“धन्य हैं वे जो अपने को दिन-हीन समझते हैं : स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।]

[04] "Blessed are they that mourn ; for they shall be comforted."

"धन्य हैं वे जो शोक व परिताप करते हैं : उन्हें सान्त्वना मिलेगी।"

[06] "Blessed are they which do hunger and thist after righteousness : for they shall be filled."

"धन्य हैं वे जो अध्यात्म के बुभुक्षु एवं पिपासु हैं : वे तृप्त किये जाएँगे।"

[07] "Blessed are the merciful ; for they shall obtain mercy."

"धन्य हैं वे जो दयालु हैं : उन पर दया की जायेगी।"

[08] "Blessed are the pure the pure in heart ; for they shall see God."

"धन्य हैं वे जिनका ह्रदय निर्मल है : वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।"

[09] "Blessed are the peacemakers ; for they shall be called the children of God."

"धन्य हैं वे जिनका ह्रदय निर्मल है : वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।"

[10] "Blessed are they which are persecuted for righteousness' sake ; for theirs is the kingdom of heaven."

"धन्य हैं वे जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं : स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।"

[11] "Blessed are ye, when men shall revile you. and persecute you and shall say all manner of evil against you Falsely, for my sake."

"धन्य हो तुम, जो लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं : तुम पर अत्याचार करते हैं और तरहँ- तरहँ के झूंठे दोष लगाते हैं।"

[12] "Rejoice, and be exceeding glad ; for great is your reward in heaven ; for so persecuted they the prophets which were before you."

"प्रसन्न होओ और आनन्दित होओ : स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले नबीयों पर भी इसी तरह अत्याचार किये गए थे।"

[From new Testament : St. Matthew Chap 05 teachings from a mountain]

THY WILL BE DONE
There is really only one prayer
That we may offer "THY WILL BE DONE."
M.K.G.

समर्पण
"हे परमात्मन !
मुझको सिर्फ़ आपकी ज़ात और हुक्म जिसमें आपकी रज़ामन्दी हो, मंज़ूर है। यानि मेरा लक्ष्य वह ही है जिसमें आपकी मर्ज़ी है। मैंने इस लोक के ख़्याल को और परलोक के ख़्याल को आपके वास्ते छोड़ दिया है। आप अपनी दया और कृपा की दृष्टि मुझ पर कीजिये।"

"जैसी समुझौं अति नीकौ तैसोइ करौ नाथ निज जियकौ।
चित्त सोई चिंतन करै, वाक् बकै नित सोई
काया कर्म वही करै जो तम्हें अति प्रिय होइ।।"

सहकार एवं शान्तिपाठ

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं
करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु। माँ विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
[तैत्तिरीयारण्यके ब्रह्मानन्दवल्ली प्रप्रा ।।10।।]
प्रथमानुवाक् :  ।।01।।


[हे परमपिता परमात्मा ! आप हम दोनों (गुरु-शिष्य) की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों का साथ-साथ पालन करें, हम दोनों साथ-साथ शक्ति प्राप्त करें, हम दोनों की पढ़ी हुयी विद्या तेजोमय हो। हम दोनों में परस्पर द्वेष न हो, दोनों का द्वैत भाव मिट जावे, स्नेह सूत्र में बंध कर एक हो जावें तथा परमलय अवस्था को प्राप्त हों।]
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।]

ॐ द्यौः शान्तिरअन्तरिक्षँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः
शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिविरश्वे देवाः
 शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः सर्व ंकुं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः
सा मा शान्तिरेधि ।। [यजु0 36/17]
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।


[हे प्रभो !
द्यु लोक और अंतरिक्ष लोक में पृथ्वी पर हमारे लिए शांति सुलभ हो। जल तथा औषधियाँ हमें शांति दें। बिना फूल के फलने वाले वृक्ष हमें शांति दें। सम्पूर्ण विद्वान और वेदवाणी से हमें शांति प्राप्त हो। सम्पूर्ण पदार्थ हमें शांति देने वाले हों। शांति भी शांति प्रदान करने वाली हो और वह शांति हमारे लिए सदा बृद्धि को प्राप्त होती रहे। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

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